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मुफ्त का लाभ |
मुर्गी कि टट्टी खाने के बाद सरपंचों ने फैसला लिया कि महाज्ञानी से कुछ नहीं बोलेंगे। क्यूंकि उसका अपमान करके भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
इसलिए आज जब महेज्ञानी खेत पर जा रहा था तो उस किसे ने नहीं टोका । दिन भर सरपंचों कि बाते चलती रही। बातों ही बातों में एक प्रश्न निकालकर आया कि गांव के ऊपर कितने तारे है? दो सरपंचों ने अपनी अपनी राय दी। एक ने कहा कि हम रात को गिनेंगे और बताएंगे।
कल सुबह हुई एक सरपंच ने कहा कि में कल रात तारे गिने 5087 तारे थे। दूसरा बोला मैने तारे गिने 6000 थे। दोनों में बहस होने लगी तब मामला बिगड़ते देख और सरपंचों ने कहा कि अभी के समय पर महाज्ञानी सबसे बुद्धिमान है इसलिए उसके पास चलते है।
सारे सरपंच महेज्ञानी के पास गए और उन्होंने पूछा कि अपने गांव पर कितने तारे है। महाज्ञानी को एक ने बताया 5087 और दूसरे ने 6000 बताए।
महा ज्ञानी ने 5087 वाले को एकांत में बुलाया। और कहा कि 6000 वाला सही है पर में तुम्हारी तरफ बोलने को तैयार हूं यदि तुम मुझे 100 रुपए दो तो।
सरपंच अपनी नाक बचाने के लिए तैयार हो गया।
अब दूसरे को बुलाया और कहा 5087 तारे सही है पर में तुम्हारी तरफ बोल सकता हूं यदि तुम मुझे 200 रूप दो तो। सरपंच अपनी बुद्धिमत्ता बनाए रखने के लिए उसने 200 रूपए दे दिए।
महा ज्ञानी ने फिर पहले सरपंच को बुलाया और कहा में दूसरे की बात मानूंगा क्यूंकि उसने मुझे 200 रूप दिए है । इतना सुनते ही उसने 200 रुपए दे दिए।
महाग्यनी ने बाहर आकर कहा कि दोनों सरपंच सच बोल रहे है। तभी गाव वालो ने कहा तुम कैसे बोल सकते हो कि सच बोल रहे है । तब महैज्ञानी बोला कि दोनों सरपंचों ने समय अंतराल में तारे गिने जिसकी बजह से इन्हें कुछ दिखाई नहीं दिए ।जितना ज्यादा अंधेरा होता है उतने ही सारे तारे दिखाई देते है । लेकिन सच में इस गांव के ऊपर करोड़ों तारे है ।
इतना सुनते ही सरपंचों के मुंह लटका लिए पर वह अपने रूपए वापस नहीं ले सकते थे। कहीं महा ज्ञानी रूपए देकर उनकी तरफ बोलने कि पोल ना खोल दे।
इसलिए सारे सरपंच अपने अपने घर चले गए।
लोग महा ज्ञानी कि तारीफ करने लगे। लेकिन महाग्यानी को मुफ्त के 400 रूप मिल गए थे।