![]() |
पोट्टी की आत्मकथा |
हेलो में हूं पोट्टी आप सभी तो जानते ही है सुबह सुबह में प्रकृति का लुफ्त उठाने आता हूं । लेकिन आजकल तो मुझे छोटे से घर में कैद होना पड़ता है पहले में कहीं खेत में तो कहीं नदी पहाड़ों की सैर करता था। लेकिन एक बार मेरे साथ जो हुआ मुझे सुनके रोना आ गया।
एक गांव में दो दोस्त रहते थे। मेरा मतलब बहुत दोस्त रहते थे । चूंकि यह कहानी उन दो दोस्तो कि है जो की आज बहुत ही दुखी है।
क्यूंकि उनके साथ ऐसी घटना हुई कि सायद ही किसी के साथ हुई होगी।
पहले तो उनके नाम जानलो एक था हरी दूसरा पोटी।
हा नाम थोड़े अलग है क्या करू मुझे भी शर्म आती है।
पर छोड़ो में सुनाता हूं, हुआ क्या एक दिन हरी पोटी
ने पड़ोसी कि मुर्गी का अंडा चुरा लिया। भाई अंडा चुराके दूसरे दिन दोनों जंगल में सुबह हल्के होने गए। हरी ने कहा पोटी मेरे दिमाग में एक प्लान है । पोटी ने पोट्टी करते हुए कहा कि क्या प्लान है।
हरी ने कहा कि हम उस अंडे से मुर्गी निकालेंगे । उसे बड़ा करेंगे इतना सुनते ही पोटी ने कुछ कहना चाहा पर हरी ने कहा मेरी बात पूरी सुनो फिर कहना जो भी कहना है। हरी ने कहना शुरू किया। मुर्गी के बहुत सारे बच्चे होंगे उन्हें बेच के एक जमीन खरीदेंगे उसमें सब्जियां लगाएंगे और खूब रुपए कमाएंगे। फिर हम भी जमींदार कि गिनती में आएंगे।
पोटी ने कुछ न कहा बस टुकुर टुकुर पोट्टी को देखे जा रहा था। हरी ने कहा क्या हुआ जबसे तुम उस पोट्टी को देखे जा रहे हो।
पोटी ने कहा वह पोट्टी वहीं अंडा है। इतना सुनते ही हरी ने कहा कि यह नहीं हो सकता। दोनों उदास होकर वापस लौट गए।