Sunday 15 September 2019

महागुरु और संवेग(भाग 3- अद्भूत नगरी में प्रवेश)

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महागुरु और संवेग(भाग 3- अद्भूत नगरी में प्रवेश)


महागुरु और संवेग सुबह सुबह निकले ओर किसी को बिना पता चले ।गुफा में छलांग लगा दी । इस बार भी वही मानव मिला जो पिछली बार मिला था।इस बार भी उसने हमला किया लेकिन इस बार महागुरु और संवेग को उस अद्भूत नगरी को देखना ही था इसलिए दोनों ने पूरी बाजी लगा दी उस मानव को हराने के लिए ।और आखिरकार हरा दिया।और उस रास्ते से चल दिए ।वो रास्ता जमीन के नीचे से था इसलिए कहीं कहीं गुफा में पानी भी मिला ओर अंधेरा भी था पर वह दोनों उन सारी बाधाओं को पार कर के गुफा से बाहर निकले ।गुफा से बाहर निकलते ही उन लोगो ने ऐसा नजारा देखा जो कभी नहीं देखा था लग रहा था स्वर्ग में आ गए हो। संवेग महागुरु से कुछ कहने ही वाला था कि आकाश से कोई पछी आया ओर उसे पंजो मे पकड़ कर उड़ने लगा । महागुरु ने अपनी तलवार फेक कर मारी पछि की गति के आगे उसकी तलवार का निशाना चूक गया। तभी कहीं से एक तीर उड़ता हुआ पच्छी में जा घुसा पच्छि ने संवेग को छोड़ दिया और उड़ कार चिल्लाते हुए चला गया।संवेग नीचे गिरने लगा।तभी एक परी वहा आई और संवेग को पकड़ कर अपनी बाहों में भर लिया और दोनों नीचे आने लगे।संवेग ने कहा है देवी आप कोन है।उस देवी ने कहा में इसी नगरी में रहती हूं में इस नगरी के महामंत्री कि बेटी हूं मेरा नाम सिद्धि है।में अपनी सहेलियों के साथ यह भ्रमण करने आती थी ।संवेग आकाश में देखता है वहा कुछ परिया दिखती है जो उन्ही की ओर आ रही है।

महागुरु थोड़ा अकडू था इसलिए उसे इन सब बातो में दिलचस्पी नहीं थी।उसने संवेग से कहा चलो यहां से चलते है।
पर संवेग ने कहा कहां चलते है यह स्वर्ग छोड़कर कहा जा रहे हो।तब महागुरु कहता है स्वर्ग   हो या कुछ में अपने ही राज्य में ठीक था। मुझे वापस वही जाना है वहा के लोगो की सेवा करनी है।ठीक है तुम सेवा करो में तो यही रहूंगा। ऐसा संवेग ने कहा। संवेग की बात सुनते हि महागुरू को गुस्सा आया ओर अकेले ही चल दिया और देखा गुफा का दरवाजा तो बंद है ।पर अभी तो हम यही से गिरे थे।उसने मन ही मन सोचा।

तब परिया कहती है जो एक बार यहां आ जाता है वह वापस नहीं जा पाता।महागुरु कहता है जा नहीं पाता या जाता नहीं है। महागुरु ने उसकी बात जोर से सुनी को जा नहीं पाता ।और वह समझ गया कुछ तो गड़बड़ है ।पर  संवेग कहता है तुम्ही समझाओ परियो यहां से कोन जाना चाहेगा।
पारिया कहती है हमें आपके स्वागत का एक मौका तो दीजिए। संवेग ओर महागुरु को अपने साथ महलों में ले चलती है।महल में लोगो को देखकर महागुरु को शक होने लगता है।क्यूंकि वहा कोई राजा ही ना था।जब राजा ही नहीं तो मंत्री कैसे हो सकता है।महागुरु को सब  माया लगती है। लेकिन संवेग उस बात पर ध्यान ही नहीं देता है।ओर अपनी खातिरदारी करवाता है।महल के एक कमरे में संवेग को पारियों ने घेर लिया उसने सोचा परिया उस पर डोरे डाल रही है। पर संवेग संभल ना पाया एक परी ने अनोखे हथियार से उस पर वार किया तभी महागुरु दीवार तोड़कर आता है ओर उस वार को निरस्त कर देता है। देखते ही देखते परिया चुड़ेल बन जाती है।और एकाएक वार करने लगती है संवेग तो समझ ही नहीं पाता है कि क्या हो रहा है।पर महागुरु पहले ही समझ गया था यह एक माया है।और उनके वारो का जबाब देते हुए बाहर निकालने लगता है।दोनों भागते है गुफा के द्वार की ओर ।तभी एक गिद्घ वहा आता है ओर दोनों को अपने पंजों में दबाकर उड़ जाता है।
वह देखते है की यह गिद्ध तो वहीं मानव था जो उस गुफा में मिला था ।ओर वह कहता है कि जिस आदमी को तुमने गुफा से निकाला था वह आदमी और कोई नहीं इन्हीं चुड़ेलो में से एक था वह कोई मनुष्य नहीं था ।
फिर वह बूढ़ी मां कोन थी। वह भी एक चुड़ैल ही होगी ।  यहा कोई भी व्यक्ति नहीं आ सकता क्योंकि किसी को भी इस जगह  का पता नहीं है ।बस माया नगरी में रहने वाले चुड़ैल ही जानती है। पर वह यहां नहीं आ पाती है कभी आ भी जाती है तो में उन्हें वापस वही भेज देता हूं ।पर वो दोनो मुझे नहीं पता कैसे बच गई।
अब तुम लोग गुफा से ऊपर जाओ और उन्हें ढूंडो नहीं तो वह दोनों चुड़ैल तुम्हारे पूरे राज्य को मार डालेंगे।
महागुरु और संवेग उसकी बात मानकर चल दिए।

इस कहानी का अगला भाग देखें ।

महागुरु और संवेग(भाग 4- चुड़ेलो का अन्त और महागुरु से लोगो का रूठना) -https://jholaachhaap.blogspot.com/2019/09/4.html?m=1


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